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मुठभेड़ या इन काउंटर या Extra Judicial Killing भारत में कोई नया शब्द नहीं हां हर एक घटना के बाद यह शब्द जनमानस के बीच और गूगल पर हॉट हो जाता है!
आज विकास दुबे और उसके गुर्गों के एनकाउंटर के बाद यह शब्द फिर चर्चा में!
समाज के प्रबुद्ध वर्ग जनता पत्रकार समूह अब इसके सही और गलत की चर्चा में लगे हुए इन सबके बीच यह समझना जरूरी है कि हमारे देश का कानून इसको कितना सही और गलत मानता है साथ ही साथ मुठभेड़ और इन काउंटर देश की आम जनता और इस देश के संविधान द्वारा दिया गया कानून के शासन को कितना लाभ या हानी पहुंचाता है!
भारत के शासन व्यवस्था का आधार विधि का शासन है विधि के शासन में शासक और शासित दोनों ही विधि के अधीन होते हैं विधि का शासन का मूलभूत आधार यह है की विधि ही सर्वोपरि एवं सर्वव्यापी है .
शासन विधि के अधीन है और विधियों के द्वारा ही मर्यादित है! व्यक्ति के अधिकार शासक की इच्छा पर नहीं बल्कि विधि के अधीन है.
विधि के शासन में सभी नागरिक विधि के सम्मुख समान होते हैं तथा सभी को विधि का समान संरक्षण प्राप्त होता है. किसी भी व्यक्ति को तभी दंडित किया जा सकता है जब उसके अपराध को विधि के द्वारा प्रमाणित किया जा चुका हो और उसे दंड देने का अधिकार भी सिर्फ विधि द्वारा स्थापित न्यायालय को होता है.
प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक डायसी ने अपनी पुस्तक लॉ ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन मैं विधि के शासन के तीन अर्थ बताएं पहला विधि के शासन का मतलब देश में कानून की समानता का होना है!
दूसरा विधि के शासन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के उल्लंघन के लिए दंड दिया जा सकता है!
तीसरा विधि के शासन में संविधान की व्याख्या और किसी को दंड देने का अधिकार न्यायाधीशों के निर्णय के द्वारा होगा !
भारत के संविधान में विधि के शासन को आत्मसात किया गया और इसके अनुच्छेद 14 के अनुसार प्रत्येक नागरिक के लिए एक ही कानून होगा जो समान रूप से लागू होगा जाति धर्म इत्यादि कारणों से किसी को विशेष का विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होगा!
भारतीय संविधान में कानून के समानता न केवल देश के नागरिकों को आपूर्ति विदेशियों को भी समान रूप से बिना जाति धर्म वर्ग स्थान आदि का भेदभाव किए दिया गया है!
अनुच्छेद 20 के अनुसार कोई नागरिक विधि द्वारा निर्धारित अपराध के लिए केवल एक बार ही दंडित हो सकता है अनुच्छेद 21 के द्वारा किसी भी व्यक्ति को मृत्यु दंड अथवा कारागार विधि सम्मत रूप में ही दिया जा सकता है!
यद्यपि राष्ट्रपति और राज्यपाल देश के साधारण न्यायालय द्वारा दंडित नहीं हो सकते इसके अलावा उन्हें कुछ और भी विशेषाधिकार दिए गए हैं!
देश के सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को नागरिकों के कानून सम्मत मूल अधिकारों की रक्षा का दायित्व दिया गया है!
उच्चतम न्यायालय ने केसवानंद भारती केस 1973 में कहां की विधि का शासन संविधान की मूलभूत संरचना है बाद में जबलपुर एडीएम बनाम एसके शुक्ला में भी सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया की संविधान की विधि का शासन है!
अब जबकि भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कर तय कर रखा है की बिना जांच मुकदमा गवाही ट्रायल के किसी को भी न्यायाधीश के अलावा सजा देने का हक नहीं है तो फिर पुलिस को किसी को इन काउंटर करके मारने का हक कहां से मिलता है.दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 46 उप धारा 2 कहता है की कोई व्यक्ति गिरफ्तारी करने के समय बलपूर्वक विरोध करता है या भागने का प्रयास करता है तो पुलिस आवश्यक सभी तरह के साधन या प्रयास उपयोग में लाकर उसे भागने से रोकेगी और अरेस्ट करेगी!
इसके साथ ही धारा 49 यह कहता है की पुलिस किसी व्यक्ति को भागने से रोकने के लिए जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग या और कोई कदम नहीं उठाएगी जितना उसको निकल भागने से रोकने के लिए आवश्यक हो!
इस प्रकार यह स्पष्ट है किस संविधान भारत के कानून और भारत के न्यायालय किसी भी नागरिक को कानून के समक्ष समान अधिकार देती है लेकिन इसके बावजूद बहुत ही दुर्दांत, वहसी, समाज के लिए कोड बन चुके अपराधियों को पुलिस के साथ-साथ जनता भी चाहती है कि उनकी सजा मौत हो और वह भी ऑन द स्पॉट!
किसी अपराधी को ऑन द स्पॉट सजा-ए-मौत देने से वह अपराधी जरूर खत्म हो जाता है लेकिन उस अपराध के तार जिन जिन से जुड़े होते हैं उनका पता लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है और शायद यही वजह है की पॉलिटिकल क्राइम मैं पुलिस अधिकतर मामलों में सजा-ए-मौत ऑन द स्पॉट जिसको आप मुठभेड़ या एनकाउंटर भी कह सकते हैं करने में विश्वास करती है लेकिन भारत जैसे सभ्य समाज के लिए जहां कानून का शासन सर्वोपरि है वहां किसी भी अपराधी को बिना न्यायालय द्वारा दोषी सिद्ध किए मारना ना सिर्फ देश से कानून की शासन को खत्म करना होगा बल्कि देश में उस अपराधी को संरक्षित करने वाले उन सभी अपराधियों को संरक्षित करने जैसा होगा! यहां पर मुंबई हमलों के आरोपी कसाब का उदाहरण लिया जा सकता है जिसको कस्टडी में लेने के बाद भारत सरकार ने यह सिद्ध करने में सफलता पाई कि वह पाकिस्तान द्वारा संचालित और संरक्षित था इसके अलावा भारत सरकार को पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने में भी मदद मिली!
अतः भारत जैसे सभी देश के लिए जहां देश में कानून का शासन सर्वोपरि है जहां संविधान सर्वोपरि है वहां किसी एक अपराधी को मुठभेड़ में मारने से अपराध खत्म होने की बजाय कहीं ना कहीं संरक्षित होता है जो हर प्रकार से नागरिक, समाज , देश के लिए घातक है!यही वजह है की भारत के सर्वोच्च न्यायालय की डबल बेंच ने 2014 में पीयूसीएल बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के केस में मुंबई पुलिस द्वारा 1995 से 1997 तक 90 एनकाउंटर के जांच के लिए फाइल पीआईएल मैं फैसले के दौरान अनुच्छेद 141 का उपयोग करते हुए इन काउंटर को एक्स्ट्राज्यूडिशल किलिंग माना जो अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है और कुछ नियमो के पालन को जरूरी कर दिया जिसमें पुलिस एनकाउंटर के दौरान हुई मौत की निष्पक्ष प्रभावी और स्वतंत्र जांच की सिफारिश की जिसमें एनकाउंटर की एफ आई आर करने एनकाउंटर की जांच किसी उच्च अधिकारी या न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा करवाने और उसकी जानकारी एनएचआरसी या राज्य के मानवाधिकार आयोग के पास भेजने की बात कही!
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